यूं बन्जर मरुस्थल सी थमी है ज़िन्दगी
न कोई राह नज़र आती, न किसी मंजिल का निशाँ
न इस अन्धकार से है प्यार, न उस उजाले का इंतज़ार
न पतझड़ की पीड़ा है सताती, न सावन की फुहारें ही सुहाती
बेटुक, मौन, बस आसमान को ताकती ये ज़िन्दगी.
यूं बन्जर मरुस्थल सी थमी है ज़िन्दगी........बस थमी है ज़िन्दगी
1 comment:
I wish I will find such beautiful words to comment on your poems one day
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