Tuesday, June 22, 2010

रिश्ते

गुलज़ार साहिब ने कहा है 'हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते'.
पर उन रिश्तों का क्या जो हाथ थामने से पहले ही छूट जाते हैं ?
उनका क्या जहाँ थामे हाथ बेड़ियों से प्रतीत होते हैं?
और शायद कुछ  रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो कभी हाथों के मोहताज नहीं होते.

Tuesday, June 15, 2010

Sharing

There is no dearth of those who can give us a listening ear,

It is just that we need to be ready to share with them.

Yesterday I discovered two of them, ‘myself’ and my ‘laptop’.

Sharing helps a lot.

......थमी है ज़िन्दगी

यूं बन्जर मरुस्थल सी थमी है ज़िन्दगी


न कोई राह नज़र आती, न किसी मंजिल का निशाँ

न इस अन्धकार से है प्यार, न उस उजाले का इंतज़ार

न पतझड़ की पीड़ा है सताती, न सावन की फुहारें ही सुहाती

बेटुक, मौन, बस आसमान को ताकती ये ज़िन्दगी.

यूं बन्जर मरुस्थल सी थमी है ज़िन्दगी........बस थमी है ज़िन्दगी

Friday, June 11, 2010

So I know now

The wind is still hot here
But I know now,
No soothing breeze can sweep me off to another world.

Wednesday, June 9, 2010

The moonlit rainy night

What a night it was,
The rain came at a time
when I started enjoying my walk under the moonlit sky,
and before I could express my desire to get drenched ceaselessly,
the moon brought me back to reality.
Back to my own stories, to my own world.

वो शब्द और वो लम्हे

हर शब्द को अपना बना कर संजोया था मैंने
हर लम्हे को सपना बना कर पिरोया था मैंने.
मोतियों की माला यों टूट कर बिखरी
न कोई सपना रहा और न ही कोई अपना